सामूहिक आत्महत्याएं : परिवार को रखें सुरक्षित

सामूहिक आत्महत्याएं : परिवार को रखें सुरक्षित

लोग कितने तनाव में जी रहे हैं, आएदिन होने वाली सामूहिक आत्महत्याएं इस का प्रमाण हैं. लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है और इस से बचा कैसे जा सकता है, इस तरफ ध्यान दिया जाना बेहद जरूरी है.    इंदौर के नजदीक क्रीसेंट वाटर पार्क रिसोर्ट 12 महीनों आबाद रहता है. परिवार सहित 1-2 दिनों की छुट्टियां गुजारने के लिए यहां लोगों का तांता लगा रहता है. अभिषेक ने औनलाइन इस रिसोर्ट में कमरा बुक कराया था और 24 सितंबर को प्रीति व बच्चों सहित रूम नंबर 211 में चैकइन भी कर लिया था.   

 किसी को अंदाजा नहीं था कि अभिषेक और प्रीति के जेहन में एक ऐसा कायराना व पलायनवादी विचार पनप रहा है जिस की सभ्य और आधुनिक समाज में आमतौर पर कोई जगह या वजह नहीं होनी चाहिए. 26 सितंबर की दोपहर 3 बजे तक जब कमरा नंबर 211 में कोई हलचल नहीं हुई और न ही कोई बाहर निकला, तो रिसोर्ट प्रबंधन ने दरवाजा खटखटाया और कोई जवाब न मिलने पर दरवाजा डुप्लीकेट चाबी से खोला गया. वहां चारों की लाशें पड़ी थीं.        परिवार के सदस्यों की हत्या कर मुखिया द्वारा भी आत्महत्या कर लेने का यह कोई पहला या आखिरी मौका नहीं है बल्कि ऐसा अब हर कभी हर कहीं होता रहता है. फर्क आर्थिक स्थिति और प्रतिष्ठा के लिहाज से हत्या और फिर आत्महत्या कर लेने के तरीकों में होता है.       बूढ़ी मां बेचारी बेटेबहू और नातीनातिन के लौटने का इंतजार करती रहीं. लेकिन खबर यह आई कि इन चारों ने आत्महत्या कर ली है. मां की आंखें पथराई की पथराई रह गईं. जिस ने भी सुना उस ने सोचा यही कि हंसमुख, मिलनसार सक्सेना दंपती के पास किस चीज की कमी थी जो उन्होंने इतने घातक तरीके से आत्महत्या कर ली और आगेपीछे कुछ नहीं सोचा. जरूर कोई बड़ी बात है या फिर सक्सेना परिवार किसी ऐसी परेशानी या अवसाद का शिकार था जिस की चर्चा वह किसी से नहीं कर पा रहा था 

 अद्वैत और अनन्या की तो खुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि उन्हें न केवल व्यस्त नौकरीपेशा मम्मीपापा के साथ रिसोर्ट में वक्त गुजारने का मौका मिल रहा था बल्कि स्विमिंग पूल, मनपसंद पकवानों और पार्क का मजा भी मिल रहा था. 

    प्रारंभिक जांच में उजागर हुआ कि आत्महत्या के लिए सोडियम नाइट्रेट नाम के कैमिकल का इस्तेमाल किया गया था. चारों के शरीर नीले पड़ गए थे.

बात, हालांकि, सच है लेकिन इसे सम झने का तरीका गलत है. अभिषेक और प्रीति के मामले में भी यही हुआ दिख रहा है कि इन्होंने भविष्य के लिए पर्याप्त पैसा बचा कर नहीं रखा था. अभिषेक की नौकरी जाते ही वे घबरा गए. प्रीति की सैलरी इतनी नहीं थी कि उस से घर के खर्च भी पूरे हो पाते.     

आदमी कितना भी सभ्य और आधुनिक हो जाए लेकिन दिलोदिमाग में गहरे तक बैठी धार्मिक मान्यताओं से लड़ने की ताकत अपनेआप में पैदा नहीं कर पाता, जिस की एक बड़ी वजह तेजी से बढ़ता धार्मिक माहौल और उस के पाखंड हैं. पढ़ेलिखे और कथित सभ्य समाज के लोग एक दफा भूतप्रेतों के अस्तित्वों को नकारते खुद को वैज्ञानिक सोच का मान लेते हैं, लेकिन इस मानसिक जकड़न से बाहर नहीं आ पाते कि एक सुप्रीम पावर है जिस से दुनिया और आदमी संचालित होते हैं. 

  लोग शिक्षित तो हुए हैं लेकिन तार्किक और जागरूक नहीं हो पा रहे हैं. लिहाजा, वे आसानी से धार्मिक फंदों में फंस जाते हैं. ये वे कथित आधुनिक लोग हैं जो देहाती कहलाने से बचने के लिए धोती पहन कर पूजा करने से कतराते हैं, लेकिन लाखों रुपए बाबाओं को पूजापाठ के लिए दे देते हैं और फिर चमत्कार की झूठी आस लिए जीते रहते हैं. नए जमाने के ये मूर्ख भूल जाते हैं कि वे कोई वैज्ञानिक काम नहीं कर रहे बल्कि पंडों और बाबाओं के इशारों पर उसी तरह नाच रहे हैं जिस तरह इन के पूर्वज नाचा करते थे. फर्क इतना है कि नचाने वालों ने इन के हिसाब से ही नचाने के यानी पैसा झटकने के तरीके बदल दिए हैं.   जरूरी नहीं कि सभी हैरानपरेशान लोग आत्महत्या करें. अधिकांश लोग भीषण तनाव में जी रहे हैं और यह तनाव जिन वजहों – धर्म और सोशल मीडिया – के चलते हैं, उन्हें ही वे गले लगाए बैठे हैं. ऐसे में क्या रास्ता है जो उन्हें शान से जीने की कला दिखाए, कल्पनाओं व अवसाद से बाहर निकाले? इकलौता रास्ता है शिक्षाप्रद पुस्तकें और पत्रिकाएं, क्योंकि जो लोग इन्हें पढ़ रहे हैं वे छोटीमोटी तो क्या, बड़ीबड़ी परेशानियों का भी धैर्य से मुकाबला करते जीत जाते हैं.

 

लाख टके का सवाल या परेशानी यह है कि इन लोगों को पढ़ने के रास्ते पर कैसे लाया जाए, तो सटीक जवाब यही सम झ आता है कि जो लोग पढ़ने की अहमियत और फायदे सम झते हैं वे समाज और देशहित में दूसरों को प्रेरित करें. धर्मकर्म और सोशल मीडिया में इन से बरबाद हो रहे लोगों को बचाएं. उन्हें इन के दुष्परिणामों के बारे में बताएं. तभी बात बन सकती है वरना कल को फिर किसी झुग्गी झोंपड़ी से ले कर आलीशान मकान, होटल या रिसोर्ट के कमरे में अकेले या सामूहिक आत्महत्या की हृदयविदारक खबर सुनने को तैयार रहें.

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