वह अवस्था जो शराब, भाँग, अफीम या गाँजा आदि मादक द्रव्य खाने या पीने से होती है । मादक द्रव्य के व्यवहार से उत्पन्न होनेवाली दशा । विशेष—शराब, भाँग, गाँजा, अफीम आदि एक प्रकार के विष हैं । इनके व्यवहार से शरीर में एक प्रकार की गरमी उत्पन्न होती है जिससे मनुष्य का मस्तिष्क क्षुब्ध और उत्तेजित हो उठता है, तथा स्मृति (याद) या धारणा कम हो जाती है । इसी दशा को नशा कहते हैं । साधारणतः लोग मानसिक चिंताओं से छूटने या शारीरिक शिथिलता दूर करने के अभिप्राय से मादक द्रव्यों का व्यवहार करते हैं । बहुत से लोग इन द्रव्यों के इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि वे नित्य़ प्रति इनका व्यवहार करते हैं । साधारण नशे की अवस्था मे ं चित्त में अनेक प्रकार की उमंगें उठती हैं, बहुत सी नई नई और विलक्षण बातें सूझती हैं और चित्त कुछ प्रसन्न रहता है ।
वह चीज जिससे नशा हो । मादक द्रव्य । नशा चढा़नेवाली चीज । नशीली वस्तु । यौ॰—नशापाती = मादक द्रव्य और उसकी सामग्री । नशे का सामान ।
मादक द्रव्य का प्रभाव होना । (आँखों मे) नशा छाना = नशा चढ़ना । मस्ती चढ़ना । नशा जमना = अच्छी तरह नशा होना । नशा टूटना = नशा उतरना । नशा हिरन होना = किसी असंभावित घटना आदि के कारण नशे का बिलकुल उतर जाना ।
धन, विद्या, प्रभुत्व या रूप आदि का घमंड । अभिमान । मद । गर्व । मुहा॰—नशा उतरना = गर्व या घमंड चूर होना । नशा उता- रना = घमंड दूर करना ।
एक दिन वह बचपन के एक दोस्त के साथ घूमने गया। दोस्त जुए का शौकीन था। वह उस व्यापारी को भी जुआघर ले गया। पहले तो व्यापारी ने भीतर जाने में आनाकानी की, लेकिन दोस्त के दबाव डालने पर वह मान गया।
वह अक्सर दुकान बंद कर घर जाने की बजाय जुआघर पहुँच जाता और देर रात को ही लौटता। कहते हैं कि एक लत दूसरी लत को न्योता देती है। उसने शराब पीना भी शुरू कर दिया।
दोस्तो, नशा कोई भी हो, हमेशा नाश ही करता है। जुए के नशे ने ही एक हँसते-खेलते परिवार और अच्छे-खासे चलते व्यापार का नाश कर दिया। जब नशा उतरा तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
वे अपनी लत को पूरा करने के लिए पूरे परिवार को लानत भेजने से नहीं चूकते। और जिसे अपनों के आँसू पोंछना चाहिए, वही अपनों की आँखों को आँसुओं से भर देता है। यही आँसू एक दिन उस पर बहुत भारी पड़ते हैं। इसलिए इससे जितनी जल्दी हो सके, पीछा छुड़ाएँ। अब बात यह आती है कि नशे से पीछा कैसे छुड़ाएँ। जैसे जहर जहर को मारता है, उसी तरह आपको दूसरे नशे की आदत डालना पड़ेगी। मुझे नशा ख़रीदने के लिए पैसे दे दो, नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूंगा."
ये किसी फ़िल्म का डायलॉग नहीं बल्कि देवभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में बढ़ते नशे की लत के आदी हो गए एक नौजवान राजू (बदला हुआ नाम) की कहानी है.
सफ़ेद दिखने वाला पाउडर, जिसके एक ग्राम की क़ीमत क़रीब 6000 रुपये है. सोने से भी मंहगा बिकने वाला ये नशा चिट्टा कहलाता है. इसका असर हिमाचल प्रदेश की नई नस्ल के ऊपर दिखने लगा है. जैसा कि राजू के शब्दों से जाहिर होता है, "इसकी आदत पड़ गई है. नहीं मिलने पर नींद नहीं आती है."
सफेद रंग के पाउडर सा दिखने वाला ये नशा एक तरह का सिंथेटिक ड्रग्स है. हेरोइन के साथ कुछ केमिकल्स मिलाकर ये ड्रग्स तैयार किया जाता है.
कारण क्या हो सकते हैं?
लेकिन ये सवाल तो उठता ही है कि हिमाचल प्रदेश में पहले तो कभी ऐसी चीज़ें देखी-सुनी नहीं जाती थी?
युवाओं के पास रोज़गार ना होने की वजह से भी वो कई बार नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं. ये समाज के लिए एक गंभीर चुनौती है. इसके अलावा बेरोज़गारी और तेजी से बदलता नया माहौल भी एक बड़ा फ़ैक्टर है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बीबीसी हिंदी से कहा, "जब पंजाब में ड्रग तस्करों पर शिकंजा कसने लगा तो इस धंधे से जुड़े लोगों ने पंजाब के साथ लगने वाले हिमाचल प्रदेश के इलाकों को अपना टारगेट बनाया."
"हालांकि नशे का कोराबार हिमाचल में काफ़ी पहले से सक्रिय था लेकिन सरकार संभालते ही हमने सबसे पहले इस पर शिकंजा कसा और पिछले छह महीने में काफ़ी गिरफ्तारियां भी हुई हैं."
इसे सरकार की बड़ी कामयाबी बताते हुए उन्होंने कहा, "हिमाचल प्रदेश पुलिस ने प्रदेश की सीमा के साथ लगते राज्यों की पुलिस से संपर्क साध-कर एक संयुक्त रणनीति बनाई है ताकि नशे के इन सौदागरों पर शिकंजा कसा जा सके."
You must be logged in to post a comment.