पड़ने लगती हैं पियूष की शिर पर धारा,हो जाता हैं रुचिर ज्योति मय लोचन तारा |
बर बिनोद की लहर ह्रदय में हैं लहराती,कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में हैं जाती |
आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नामही,इक्कीस कोटि-जन-पूजिता हिन्दी भाषा हैं वही |
आज का हमारा विषय हैं हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी जो कि आज के वर्तमान परिद्रश्य में विलुप्त सी प्रतीत हो रही हैं | अब अगर इसी विषय पर लोगो के सामने खुल कर चर्चा करेंगे तो सब यही कहेंगे आज का समय आधुनिक हैं तुम क्यों परेशान होते हो पूरी दुनिया कि भाषा हिन्दी करने का ठेका तुमने ले रखा हैं क्या ? लोग तो यही कहेंगे ही क्योंकि शायद उनको अपनी मातृभाषा से प्रेम नहीं अगर आपको हैं तो क्यों अपने पथ से विचलित हुया जाए और सबको जगाने का काम किया जाए,मैं बहुत बड़े स्तर पर तो लोगो को नहीं जागा पा रहा हूँ लेकिन हाँ प्रयास पूरा यही हैं मेरी बात अधिक से अधिक लोगो तक पहुचे |
जैसा कि आज का विषय हैं कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी जो कि विलुप्त सी लग रही हैं उसके कई कारण हैं,चूँकि हमारी मातृभाषा का प्रयोग कम होना हमारी ही गलती हैं | आज का योग आधुनिक है इसीलिए लोगो को हिन्दी कि अपेक्षा अंग्रेजी बोलना ज्यादा अच्छा लगता हैं हम लोगो को ऐसा लगता हैं अगर हम अपने बच्चो को अंग्रेजी मीडियम में शिक्षा देंगे तो वह शिक्षा हिन्दी मीडियम से काफी बेहतर और अच्छी होगी,पर अफ़सोस लोग यही गलती अधिकतर करते हैं |हम सभी हिन्दी बोलने से कतराते हैं हमारी प्राचीन संस्कृति में हिन्दी और संस्कृत निहित हैं | जहां एक ओर पूरा विश्व हमारी प्राचीनतम संस्कृति और हमारे प्राचीनतम पुराणों और ग्रंथो का अध्यन करना चहा रहा हैं बही हम लोग हिन्दी बोलने में शर्म महसूस करते हैं, हमारी मातृभाषा विलुप्त होने का मुख्य कारण यही हैं कि हम लोग इसको बोलने में शर्माते हैं और इसका प्रयोग करना नहीं चाहते जब हम लोग अधिक से अधिक इसका प्रयोग करने लगेंगे तब यह विलुप्त होना बंद हो जाएगी |
वैसे देखा जाए तो हिन्दी का इतिहास कोई आज का नहीं बल्कि हजारो वर्ष पुराना हैं,सन 1850 के पश्चात इसमें सबसे अधिक उन्नति हुई | थास्मिस डेविस ने कहा हैं कि कोई राष्ट्र अपनी भाषा को छोड़कर राष्ट्र नहीं कहला सकता,भाषा कि रक्षा सीमओं कि रक्षा से भी जरूरी हैं | यहाँ पर समझने बाला विषय यह हैं कि जब एक विदेशी लेखक भाषा के विषय में एक सटीक और उचित बात लिखता हैं तब ह्रदय बहुत दुखी होता हैं कि उसको तो भाषा का महत्व समझ आ रहां हैं पर अफ़सोस यही बात हमारे देश के लोगो को नहीं समझ आ रही |सुमित्रानन्दन पन्त जी ने लिखा हैं कि हिन्दी हमारे राष्ट्र कि अभिव्यक्ति का सरलतम स्रोत हैं |
अब हमारे सामने यह भी प्रश्न उठता हैं कि आखिर हम उसको अधिक से अधिक फैलाए कैसे ? इसका साधारण सा उत्तर हैं जब हमें इस भाषा को बोलने में शर्म नहीं लगेगी तब स्वतः ही इस भाषा का प्रसार खुद व् खुद होने लगेगा | जब हम अपने बच्चो को शुरुआत से ही हिन्दी में बोलना सिखायेंगे तब हिन्दी भाषा का स्वयं ही प्रसार होगा |
बैसे मैं हिन्दी भाषा का कोई विद्वान् तो नहीं पर मैं अपनी दैनिक दिनचर्या में इसी भाषा का प्रयोग करता हूँ इसको बात को मैं गर्व से कह सकता हूँ और मुझे इस बात में कोई शर्म नहीं कि मैं हिन्दी भाषा का प्रयोग करता हूँ |
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